Baby Corn Organic Farming,How to Grow Baby Corn Organic,Baby Corn Organic Farming Guide,बेबी कॉर्न जैविक खेती कैसे करें,Disease and Pest Control in Organic Baby Corn Farming,

 












बेबी कॉर्न की जैविक खेती कैसे करें: How to Grow organic Baby corn

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के किसान भाई हर साल अपनी फसल से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं। समय के साथ खेती में भी बदलाव आ रहा है और अब लोग पारंपरिक खेती के साथ-साथ जैविक खेती (Organic Farming) की ओर भी बढ़ रहे हैं।

बेबी कॉर्न एक ऐसी फसल है, जिसकी जैविक खेती करके किसान


अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। बेबी कॉर्न की मांग होटल, रेस्टोरेंट, सुपरमार्केट और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में तेजी से बढ़ रही है। इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि बेबी कॉर्न की जैविक खेती कैसे करें, वो भी बिल्कुल आसान भाषा में।

बेबी कॉर्न क्या है?

बेबी कॉर्न मक्के (मकई) का ही छोटा रूप होता है। जब मक्का के भुट्टे पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं और कोमल अवस्था में ही तोड़ लिए जाते हैं, तो उसे बेबी कॉर्न कहते हैं।
यह नरम, मीठा और पौष्टिक होता है। सब्जी, सलाद, मंचूरियन, नूडल्स आदि में इसका खूब इस्तेमाल होता है।
बेबी कॉर्न की खेती से किसानों को कम समय में अधिक आय होती है और बाजार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है।

बेबी कॉर्न की जैविक खेती के फायदे

  • जल्दी फसल तैयार होती है – 60 से 70 दिन में।

  • अच्छी आय – जैविक बेबी कॉर्न की कीमत सामान्य बेबी कॉर्न से 20-30% अधिक होती है।

  • कम लागत – रसायनिक खाद और कीटनाशक के खर्च बचते हैं।

  • मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है

  • صحة के लिए फायदेमंद – जैविक उत्पादों की मांग हर साल बढ़ रही है।

  • बाजार की स्थायी मांग – होटलों, प्रोसेसिंग यूनिट्स और विदेशों में भी डिमांड।

बेबी कॉर्न की जैविक खेती कैसे करें?

अब आइए स्टेप बाय स्टेप जानते हैं कि आप बेबी कॉर्न की जैविक खेती कैसे कर सकते हैं:

1. जलवायु और भूमि का चुनाव

  • जलवायु: बेबी कॉर्न के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम है। तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए।

  • भूमि: दोमट (Loamy) और हल्की बलुई मिट्टी बेबी कॉर्न के लिए उत्तम मानी जाती है।

  • pH स्तर: मिट्टी का pH 6.0 से 7.5 के बीच हो तो अच्छा रहता है।

नोट: जल निकासी अच्छी होनी चाहिए, नहीं तो पानी भरने से पौधे सड़ सकते हैं।

2. खेत की तैयारी

  • खेत को गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी और मुलायम हो जाए।

  • 2-3 बार हल चलाकर मिट्टी को समतल करें।

  • खेत में 10-15 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद (या वर्मी कम्पोस्ट) डालें।

  • खेत को ढेले रहित और समतल बना लें।

जैविक सुझाव: नीम की खली या पन्चगव्य का उपयोग मिट्टी को पोषक बनाने के लिए करें।

3. बीज का चयन और उपचार

  • बेबी कॉर्न के लिए विशेष किस्में जैसे HM-4, VL Baby Corn, COBC-1, Madhuri, Golden Baby आदि का उपयोग करें।

  • केवल प्रमाणित जैविक बीजों का उपयोग करें।

बीज उपचार (Natural Way):

  • बीजों को 12 घंटे तक गोमूत्र (गाय के मूत्र) या जैविक बीज उपचार घोल (ट्राइकोडर्मा फफूंद से बना) में भिगोएं।

  • फिर छाया में सुखाकर बोआई करें।

4. बीज बोआई

  • समय: खरीफ (जुलाई-अगस्त) और रबी (फरवरी-मार्च) में।

  • विधि: लाइन से बोआई करें।

  • लाइन से दूरी: 45 सेंटीमीटर।

  • पौधे से पौधे की दूरी: 20 सेंटीमीटर।

  • बीज दर: 8 से 10 किलो बीज प्रति एकड़।

जैविक सलाह:

  • बीज बोने से पहले भूमि में जैविक जीवाणु खाद डालें जैसे एजोटोबैक्टर या फॉस्फो बैक्टीरिया।

5. सिंचाई

  • बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।

  • उसके बाद 7-8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।

  • फसल के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए, नहीं तो भुट्टा छोटा और खराब हो जाएगा।

  • टपक सिंचाई (Drip Irrigation) सबसे अच्छा विकल्प है।

6. खरपतवार नियंत्रण

  • हाथ से निराई-गुड़ाई करें।

  • जैविक मल्चिंग (Organic Mulching) का उपयोग करें, जैसे कि भूसे या सूखी पत्तियों की परत खेत में बिछाएं।

  • नीम की खली का छिड़काव भी खरपतवार को रोकने में मदद करता है।

7. पोषण प्रबंधन

बेबी कॉर्न के पौधों को अच्छा पोषण चाहिए, लेकिन जैविक तरीकों से:

  • गोबर की खाद: 10-15 टन प्रति एकड़।

  • वर्मी कम्पोस्ट: 2-3 टन प्रति एकड़।

  • जैविक स्प्रे: पञ्चगव्य, जीवामृत, या संजीवक का 15-20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

  • नीम खली: प्रति एकड़ 100 किलो डालें, मिट्टी में मिला दें।

8. रोग और कीट प्रबंधन

रोग:

  • पत्तियों पर झुलसा रोग (Blight)

  • कांड सड़न (Stem rot)

कीट:

  • तना छेदक कीड़ा

  • सफेद मक्खी

जैविक नियंत्रण उपाय:

  • नीम तेल (5%) का छिड़काव करें।

  • बविस्टिन फफूंदनाशक का जैविक विकल्प ट्राइकोडर्मा का छिड़काव करें।

  • खेत में गंध ट्रैप और प्रकाश ट्रैप लगाएं।

  • हेलिकोवर्पा की रोकथाम के लिए बैसिलस थुरिंजिएन्सिस (BT) का छिड़काव करें।

9. फसल कटाई

  • बुवाई के 45 से 55 दिन बाद भुट्टा तोड़ने लायक हो जाता है।

  • जब बालियां (सिल्क) निकलने के 2-3 दिन बाद कोमल अवस्था में रहें, तभी कटाई करें।

  • देर करने पर भुट्टा सख्त हो जाता है, जिससे गुणवत्ता गिरती है।

कटाई का सही तरीका:

  • सुबह या शाम के समय भुट्टे तोड़ें।

  • भुट्टे के साथ हरे पत्ते हटा दें और साफ करके पैकिंग करें।

10. उत्पादन और आय

  • औसत उत्पादन: 7,000 से 9,000 क्विंटल बेबी कॉर्न प्रति एकड़।

  • बेबी कॉर्न की कीमत: ₹60 से ₹120 प्रति किलो (जैविक उत्पाद होने पर और अधिक)।

  • एक एकड़ से शुद्ध लाभ: ₹80,000 से ₹1,50,000 तक।

बेबी कॉर्न की प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन

  • बेबी कॉर्न को साफ कर, हल्का उबाल कर पैक किया जा सकता है।

  • डिब्बाबंद बेबी कॉर्न (Canned Baby Corn) की बहुत डिमांड है।

  • आप बेबी कॉर्न के अचार, स्नैक्स भी बना सकते हैं और ब्रांड के नाम से बेच सकते हैं।

बेबी कॉर्न की बिक्री के टिप्स

  • लोकल मंडियों, होटलों, रेस्टोरेंट और सुपरमार्केट से डायरेक्ट संपर्क करें।

  • जैविक मेलों, प्रदर्शनियों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (Amazon, BigBasket) पर भी बेच सकते हैं।

  • अपना छोटा ब्रांड बनाकर जैविक बेबी कॉर्न के नाम से प्रचार करें।

महत्वपूर्ण सुझाव

  • हमेशा प्रमाणित जैविक तरीकों का पालन करें।

  • सरकार द्वारा प्रमाणित जैविक संस्था से Organic Certification करवाएं।

  • खेत का नियमित निरीक्षण करते रहें।

  • खेती के साथ-साथ मार्केटिंग स्किल भी बढ़ाएं।

  • सोशल मीडिया (WhatsApp, Facebook) के जरिए सीधे ग्राहक बनाएं।


बेबी कॉर्न की जैविक खेती न केवल किसानों को अच्छी कमाई देती है, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधारती है और उपभोक्ताओं को स्वास्थ्यवर्धक भोजन प्रदान करती है।
थोड़ी मेहनत, सही तकनीक और बाजार की समझ के साथ कोई भी किसान भाई बहन बेबी कॉर्न की जैविक खेती से अच्छा लाभ कमा सकते हैं।
अब वक्त है बदलाव का — खेती को जैविक बनाइए, मुनाफा बढ़ाइए और देश को स्वस्थ बनाइए। 

बेबी कॉर्न जैविक रोग-कीट नियंत्रण

रोग और कीटों की समस्या कब होती है?

बेबी कॉर्न की फसल में आमतौर पर तीन चरणों में रोग-कीट का हमला होता है:

  1. शुरुआती अवस्था (10-25 दिन) — पत्तियों पर हल्की बीमारियां और छोटे कीट।

  2. मध्य अवस्था (25-45 दिन) — तना छेदक, सफेद मक्खी, झुलसा रोग।

  3. भुट्टा बनने की अवस्था (45-60 दिन) — फफूंद जनित रोग और कीटों का बड़ा हमला।

इसी के अनुसार हमें स्प्रे करना होता है।

दिन (बुवाई के बाद)समस्यासमाधान (स्प्रे सामग्री)मात्रा और तरीका
12-15 दिनबीज रोग, शुरुआती फफूंदट्राइकोडर्मा विरिडे (Trichoderma viride)5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।
20-25 दिनछोटे कीट (थ्रिप्स, माईट्स)नीम तेल (Neem Oil) 3000ppm5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
30-35 दिनतना छेदक का हमला शुरूबायोपेस्टिसाइड्स - बीटी (Bacillus thuringiensis)2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। शाम को करें।
40-45 दिनझुलसा रोग, पत्तियों के धब्बेस्यूडोमोनास फ्लुरेसेंस (Pseudomonas fluorescens)5 ग्राम प्रति लीटर पानी में स्प्रे करें।
50-55 दिनफफूंद और अंतिम कीट नियंत्रणनीम खली का घोल + गोमूत्र स्प्रेनीम खली 2 किलो + 10 लीटर गोमूत्र को 24 घंटे भिगोकर छानें, फिर 100 लीटर पानी में मिलाएं और छिड़काव करें।
दिन (बुवाई के बाद)समस्यासमाधान (स्प्रे सामग्री)मात्रा और तरीका
12-15 दिनबीज रोग, शुरुआती फफूंदट्राइकोडर्मा विरिडे (Trichoderma viride)5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।
20-25 दिनछोटे कीट (थ्रिप्स, माईट्स)नीम तेल (Neem Oil) 3000ppm5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
30-35 दिनतना छेदक का हमला शुरूबायोपेस्टिसाइड्स - बीटी (Bacillus thuringiensis)2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। शाम को करें।
40-45 दिनझुलसा रोग, पत्तियों के धब्बेस्यूडोमोनास फ्लुरेसेंस (Pseudomonas fluorescens)5 ग्राम प्रति लीटर पानी में स्प्रे करें।
50-55 दिनफफूंद और अंतिम कीट नियंत्रणनीम खली का

Post a Comment

0 Comments